(2) तीमुथियुस की पत्री (Second Epistle to Timothy) नए नियम की सोलहवीं पुस्तक है, जिसमें पौलुस ने तीमुथियुस को अंतिम सलाह और मार्गदर्शन प्रदान किया है। यह पत्री विशेष रूप से ईसाई सेवकाई, नेतृत्व, और झूठी शिक्षाओं के खिलाफ संघर्ष पर केंद्रित है।
मुख्य विषय:
- ईसाई सेवकाई और नेतृत्व:
- सेवकाई के प्रति समर्पण, नेतृत्व की भूमिका, और कठिन परिस्थितियों में स्थिरता बनाए रखना।
- झूठी शिक्षाएँ और प्रतिरोध:
- झूठी शिक्षाओं का विरोध, और सच्ची शिक्षा की पुष्टि और रक्षा।
- विश्वास में दृढ़ता:
- विश्वास की कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रेरणा, और ईसाई जीवन में संकल्प और साहस बनाए रखना।
प्रमुख खंड:
- सेवकाई की प्रेरणा और निर्देश (अध्याय 1-2):
- ईसाई सेवकाई के प्रति समर्पण और नेतृत्व की भूमिका।
- कठिन परिस्थितियों में स्थिरता बनाए रखने के निर्देश और प्रेरणा।
- झूठी शिक्षाओं का विरोध (अध्याय 3):
- झूठी शिक्षाओं और गलत प्रथाओं का विरोध, और सच्ची शिक्षा की पुष्टि।
- विश्वास में दृढ़ता (अध्याय 4):
- विश्वास की कठिनाइयों का सामना करने के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा।
- ईसाई जीवन में संकल्प और साहस बनाए रखने के निर्देश।
संरचना:
- अध्याय 1-2:
- सेवकाई की प्रेरणा और नेतृत्व की भूमिका।
- कठिन परिस्थितियों में स्थिरता बनाए रखने के लिए निर्देश।
- अध्याय 3:
- झूठी शिक्षाओं का विरोध और सच्ची शिक्षा की पुष्टि।
- अध्याय 4:
- विश्वास की कठिनाइयों का सामना और प्रेरणा।
विशेषताएँ:
- ईसाई सेवकाई और नेतृत्व:
- सेवकाई के प्रति समर्पण और नेतृत्व की भूमिका पर स्पष्ट मार्गदर्शन।
- झूठी शिक्षाएँ और प्रतिरोध:
- झूठी शिक्षाओं का विरोध और सच्ची शिक्षा की पुष्टि।
- विश्वास में दृढ़ता:
- कठिन परिस्थितियों में संकल्प और साहस बनाए रखने के लिए प्रेरणा।
इस पत्री में पौलुस ने तीमुथियुस को ईसाई सेवकाई और नेतृत्व के विषय में महत्वपूर्ण सलाह दी है, साथ ही झूठी शिक्षाओं के खिलाफ संघर्ष और विश्वास में दृढ़ता बनाए रखने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया है।