1) कुरिन्थियों की पत्री (First Epistle to the Corinthians) नए नियम की सातवीं पुस्तक है। यह पत्री पौलुस द्वारा कुरिन्थ के चर्च को लिखी गई थी और इसका उद्देश्य चर्च के आंतरिक विवादों, नैतिक समस्याओं, और व्यावहारिक जीवन के मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करना था।

मुख्य विषय:

  1. चर्च की एकता: इस पत्री में पौलुस चर्च में विभाजन और संघर्षों को हल करने के उपाय सुझाते हैं। वे चर्च की एकता और सामंजस्य पर जोर देते हैं।
  2. नैतिकता और धार्मिकता: नैतिक समस्याओं, जैसे कि अनैतिकता, न्यायिक मुद्दे, और धार्मिकता के सिद्धांतों पर चर्चा की गई है।
  3. आध्यात्मिक वरदान और सेवकाई: पौलुस आध्यात्मिक वरदानों के सही उपयोग और उनके प्रबंधन के सिद्धांतों को स्पष्ट करते हैं।

प्रमुख खंड:

  1. चर्च के विवाद और समस्याएँ (अध्याय 1-6): इस खंड में चर्च में विभाजन, नैतिक समस्याएँ, और न्यायपूर्ण जीवन के सिद्धांतों पर चर्चा की गई है। पौलुस चर्च के सदस्यों को आपसी विवादों को हल करने और एकता बनाए रखने के लिए मार्गदर्शन देते हैं।
  2. शादी, वैवाहिक जीवन, और अन्य मुद्दे (अध्याय 7): शादी, वैवाहिक जीवन, और व्यक्तिगत मुद्दों पर पौलुस की सलाह शामिल है। वे शादी और अविवाहित जीवन के बारे में दिशा निर्देश प्रदान करते हैं।
  3. खानपान और पूजा के नियम (अध्याय 8-10): इस खंड में धार्मिक प्रथाओं, आहार के नियमों, और पूजा के बारे में निर्देश दिए गए हैं।
  4. आध्यात्मिक वरदान और आदेश (अध्याय 11-14): आध्यात्मिक वरदानों का उपयोग, पूजा की व्यवस्था, और चर्च के सेवकाई के सिद्धांतों पर चर्चा की गई है। पौलुस वरदानों का सही और उचित उपयोग करने की सलाह देते हैं।
  5. पुनरुत्थान और भविष्यवाणी (अध्याय 15): पुनरुत्थान के सिद्धांत और अंतिम दिनों की भविष्यवाणी इस खंड में शामिल हैं। पौलुस मसीह के पुनरुत्थान और उसके महत्व को स्पष्ट करते हैं।
  6. समापन और अभिवादन (अध्याय 16): इस अंतिम खंड में पौलुस व्यक्तिगत संदेश, चर्च के लिए निर्देश, और समापन विचार व्यक्त करते हैं।

संरचना:

  1. अध्याय 1-6: चर्च के आंतरिक विवाद, नैतिकता, और न्यायपूर्ण जीवन के सिद्धांत।
  2. अध्याय 7: शादी और व्यक्तिगत जीवन के मुद्दों पर सलाह।
  3. अध्याय 8-10: खानपान, पूजा, और धार्मिक प्रथाओं के नियम।
  4. अध्याय 11-14: आध्यात्मिक वरदान, पूजा की व्यवस्था, और सेवकाई के सिद्धांत।
  5. अध्याय 15: पुनरुत्थान का सिद्धांत और भविष्यवाणी।
  6. अध्याय 16: व्यक्तिगत अभिवादन, चर्च के निर्देश, और समापन विचार।

विशेषताएँ:

  1. चर्च के आंतरिक विवादों की चर्चा: पौलुस चर्च के आंतरिक समस्याओं और विवादों को सुलझाने के उपाय सुझाते हैं, ताकि चर्च में एकता बनी रहे।
  2. नैतिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन: पौलुस ईसाई जीवन की नैतिकता और व्यावसायिक मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जिससे विश्वासियों को सही दिशा मिल सके।
  3. आध्यात्मिक वरदानों की भूमिका: पौलुस आध्यात्मिक वरदानों का प्रबंधन और उनका उचित उपयोग करने की सलाह देते हैं, ताकि वे चर्च के विकास और सेवकाई में सहायक हो सकें।

(1) कुरिन्थियों की पत्री ईसाई जीवन के व्यावहारिक और नैतिक मुद्दों पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है और चर्च की एकता और सामंजस्य को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण सिद्धांतों की व्याख्या करती है।

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