मत्ती का सुसमाचार, जिसे मसीहियों के नए नियम में शामिल किया गया है, ईसाई धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य यीशु को मसीहा और राजा के रूप में प्रस्तुत करना है, और यह दर्शाना है कि कैसे उनके जीवन और कार्य पुराने नियम की भविष्यवाणियों की पूर्ति करते हैं।
मुख्य विषय:
- भविष्यवाणी की पूर्ति: मत्ती दिखाते हैं कि कैसे यीशु का जीवन पुराने नियम की भविष्यवाणियों को पूरा करता है।
- यीशु को राजा के रूप में प्रस्तुत करना: मत्ती यीशु को स्वर्ग के राज्य के राजा के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिनके पास परम अधिकार और दिव्य मिशन है।
- नैतिक शिक्षाएँ: इस सुसमाचार में विस्तृत नैतिक निर्देश और उपदेश दिए गए हैं, जिनमें पर्वत उपदेश (Sermon on the Mount) प्रमुख है।
- धार्मिक नेताओं के साथ संघर्ष: मत्ती में यीशु और यहूदी धार्मिक नेताओं के बीच के संघर्ष को भी दर्शाया गया है।
प्रमुख खंड:
- अध्याय 1-2: यीशु की वंशावली और जन्म का विवरण।
- अध्याय 5-7: पर्वत उपदेश, जिसमें नैतिकता और शिष्यत्व पर शिक्षाएँ दी गई हैं।
- अध्याय 8-13: यीशु के चमत्कार और उपमाएँ।
- अध्याय 14-20: यीशु के शिक्षाएँ, चमत्कार और अनुयायियों के साथ उनकी बातचीत।
- अध्याय 21-25: यरूशलेम में यीशु की अंतिम शिक्षाएँ और अंत समय की भविष्यवाणियाँ।
- अध्याय 26-28: यीशु की गिरफ्तारी, क्रूस पर चढ़ाई, पुनरुत्थान और शिष्यों को सुसमाचार फैलाने का आदेश।
संरचना:
- अध्याय 1-4: यीशु के प्रारंभिक जीवन और सेवकाई की शुरुआत।
- अध्याय 5-7: पर्वत उपदेश।
- अध्याय 8-9: यीशु के चमत्कार।
- अध्याय 10-12: शिष्यों को निर्देश और धार्मिक गुरुओं के साथ संघर्ष।
- अध्याय 13-20: उपमाएँ और शिक्षाएँ।
- अध्याय 21-25: यरूशलेम में यीशु की अंतिम शिक्षाएँ और भविष्यवाणियाँ।
- अध्याय 26-28: यीशु की अंतिम घटनाएँ, पुनरुत्थान, और शिष्यों को आदेश।
मत्ती का सुसमाचार ईसाई धर्म में नैतिकता, मसीहाई भविष्यवाणियों की पूर्ति, और यीशु के जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से दिव्य सत्य को समझाने का एक महत्वपूर्ण साधन है।