यिर्मयाह बाइबल का तेइसवाँ ग्रंथ है और इसे एक विलापकारी भविष्यवक्ता के रूप में जाना जाता है। इस पुस्तक में यिर्मयाह ने अपने समय के यहूदा के लोगों की आध्यात्मिक पतन और आने वाले विनाश की भविष्यवाणी की है।
यिर्मयाह की पुस्तक को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
भाग 1: यहूदा का पतन (अध्याय 1-45)
- इस भाग में यिर्मयाह ने यहूदा के लोगों की आध्यात्मिक पतन की कड़ी निंदा की है।
- उसने यहूदा के लोगों को आगामी विनाश के बारे में चेतावनी दी और उन्हें पश्चाताप करने का आह्वान किया।
भाग 2: विलाप और आशा (अध्याय 46-52)
- इस भाग में यिर्मयाह ने यहूदा के पतन के बाद के दुःख और विलाप को व्यक्त किया है।
- हालांकि, इसी भाग में उसने भविष्य में परमेश्वर के पुनरुद्धार की भी आशा व्यक्त की है।
यिर्मयाह की पुस्तक एक कठिन लेकिन महत्वपूर्ण संदेश देती है। यह पुस्तक परमेश्वर की पवित्रता, न्याय, और दया को प्रदर्शित करती है। साथ ही, यह आशा का संदेश भी देती है कि परमेश्वर अपने लोगों को भूल नहीं जाएगा।